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Thursday, 3 May 2012

जूनी नाव



जूनी नाव बुने सन्नाटा
कहती करूनं कहानी     
दुल्हन सी थी नई नवेली 
सुख सपनों की रानी 
नाचा करती थी लहरों से 
मीरा सी दीवानी 
भूले नहीं भूलती उसकी 
तन मन भरी रवानी 
जीवन रेखा थी बहुतों की
 किया न कभी बहाना
गंगा जमुना के संगम में 
सहजा ठौर ठिकाना 
प्रलय बाढ़ झंझावातों में
 मनु   की बुनी कहानी 
बूढ़े बरगद से ज्यों करती 
छाया सदा किनारा 
बैसे ही नाविक ने छोड़ा 
समझ उसे नाकारा 
रह रह हूक उठे अंतस में 
जग करता मनमानी
[भोपाल :05.03 2008 ]