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Tuesday, 10 April 2012

स्रष्टि सृजन सन्देश !

हाय हाय यह कैसा देश
अरे हाय कैसा परिवेश

    माँ बापू ही पीछे पड़ते
    पल पल बढ़ना मेरा पढ़ते
   पहचान हुई जैसे ही मेरी
  घुसुर पुसुर आपस में करते
बदला बदला उनका सोच
आनन से झलके अफ़सोस
    
      रहे बांस ना बजे बाँसुरी
      चल पड़ते हैं राह आसुरी
      भ्रूण ह्त्या पाप ना समझे
      खुश हों बजा बजा कर तारी
देते हैं सबको उपदेश
लड़के  की है चाह विशेष

      जैसे तैसे पैदा हौऊँ
      पड़ी पड़ी कचड़े में रौऊँ 
      बाँझ बिबस पत्थर दिल पिघले
      घर आँगन में खुशियाँ बौऊँ 
रचूँ नया इतिहास अशेष
स्रष्टि सृजन बांटूं सन्देश
[भोपाल ०८.०४.२०१२]