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Saturday, 7 January 2012

सूरज से जलते रहना

रामदीन से
यह कहना
सूरज से
जलते रहना
सचमुच में बेमानी है १
जबसे उसने होश सभाला
नहीं चैन  से मिला निबाला
दस्तक देता रहा दिवाला
गम के घूँट
पिया करता
उससे तब
कहना
सूरज से हँसते रहना
सचमुच में बेमानी है !

छानी छप्पर उड़े हवा में
खेत टपरिया बिके दवा में
जान नहीं है हाथ पाँव में
तन मन  है
जिसका ठठरी
उससे तो 
यह कहना
सूरज से खिलते रहना
सचमुच में बेमानी है !

जिसके घर में दिया न बाती
हवा न कोई आती जाती
तन तन नहीं फोन की होती
रेशम धागे
राख़ हुए
रामदीन से
यह कहना
सूरज से जलते रहना
सचमुच में बेमानी है !
[सैंट जॉन कनाडा :०६.१२.२१२]