कहाँ गए वे दिन वे लोग
बहू बेट्याँ बाजारों में
खजुराहो सी सजल मूर्तियाँ
टंगजातीं हैं बरबस आँखें
चलतीं फिरतीं अटल खूँटियाँ
सीता सत्यवती भारत की
कहाँ गयीं आदर्श नारियां
आदर्शों के लिए छोड़ दें सुख सुविधा साधन सब भोग
सकल समाज तंत्र को घेरे
भ्रष्टाचार अनय के बादल
न्याय धर्म ईमान लुट रहा
छुड़ा रहे आंखों का काजल
नीति तंत्र की धुरी बने
एक से एक थे आलिमफाजिल
ढूढे से भी अब ना मिलता जोड़ गुणा का भी सहयोग
आसमान पर उड़े आदमी
जड़ ज़मीन से उखडा उखडा
बना मशीन आदमी घूमें
प्रक्रति नटी से करता झगड़ा
उगल रहा है आए दिन अब
नए नए लफड़ा पर लफड़ा
दिन सोना चादीं सीं रातेंस्बके सब सपनों का योग
[भोपाल:०८.०१.०८]
लफडे
Thursday, 21 May 2009
Friday, 1 May 2009
आम नीम की छाँव
बरगद ,नीम, आम की छाँव !
जेठ मॉस की तपी दुपहरी
आग उगलता हो जब सूरज
पंछी हर नर नारी की
बारा बजा रही हो सूरत
हांथ पाँव फूले छाता के तब सुस्ताना मेरे भैया
राह किनारे मेरा गाँव !
अपने घर का पता बता दूँ
द्वारे का नकशा समझा दूँ
चबूतरे पर छाँव घनेरी
शिमला नैनीताल दुपहरी
तन मन थक हो चकनाचूर तब सुस्ताना मेरे भैया
ले देना ,बस, मेरा नाँव !
अम्मा बापू घर न मिलेगें
हार खेत खलिहान ठिकाना
अय्या बाबा पके आम हैं
खुश होंगें उनसे बतियाना
मन में उठे सवाल पूछना तब सुस्ताना मेरे भैया
फिर चल देना अपने ठाँव !
[भोपाल:१६.०१ ०८]
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