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Thursday, 21 May 2009

वे दिन वे लोग

कहाँ गए वे दिन वे लोग

बहू बेट्याँ बाजारों में
खजुराहो सी सजल मूर्तियाँ
टंगजातीं हैं बरबस आँखें
चलतीं फिरतीं अटल खूँटियाँ
सीता सत्यवती भारत की
कहाँ गयीं आदर्श नारियां
आदर्शों के लिए छोड़ दें सुख सुविधा साधन सब भोग

सकल समाज तंत्र को घेरे
भ्रष्टाचार अनय के बादल
न्याय धर्म ईमान लुट रहा
छुड़ा रहे आंखों का काजल
नीति तंत्र की धुरी बने
एक से एक थे आलिमफाजिल
ढूढे से भी अब ना मिलता जोड़ गुणा का भी सहयोग

आसमान पर उड़े आदमी
जड़ ज़मीन से उखडा उखडा
बना मशीन आदमी घूमें
प्रक्रति नटी से करता झगड़ा
उगल रहा है आए दिन अब
नए नए लफड़ा पर लफड़ा
दिन सोना चादीं सीं रातेंस्बके सब सपनों का योग
[भोपाल:०८.०१.०८]
लफडे

Friday, 1 May 2009

आम नीम की छाँव

चलते चलते जब थक जाओ सुस्ता लेना मेरे भैया
बरगद ,नीम, आम की छाँव !

जेठ मॉस की तपी दुपहरी
आग उगलता हो जब सूरज
पंछी हर नर नारी की
बारा बजा रही हो सूरत
हांथ पाँव फूले छाता के तब सुस्ताना मेरे भैया
राह किनारे मेरा गाँव !

अपने घर का पता बता दूँ
द्वारे का नकशा समझा दूँ
चबूतरे पर छाँव घनेरी
शिमला नैनीताल दुपहरी
तन मन थक हो चकनाचूर तब सुस्ताना मेरे भैया
ले देना ,बस, मेरा नाँव !

अम्मा बापू घर न मिलेगें
हार खेत खलिहान ठिकाना
अय्या बाबा पके आम हैं
खुश होंगें उनसे बतियाना
मन में उठे सवाल पूछना तब सुस्ताना मेरे भैया
फिर चल देना अपने ठाँव !
[भोपाल:१६.०१ ०८]