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Tuesday, 18 November 2008

क्यों इतराते जय जय राम

उमर बड़ी है कविता छोटी
क्यों इतराते जय जय राम
चलने से पहले तैयारी
अगर नहीं कर पाये पूरी
अधकचरे संसाधन सारे
संकल्पों की मांग अधूरी
मंजिल तक कैसे पहुचोगे
जब सकुचाते जयजयराम

बम बारूद बिछी पग पग पर
बागुड लगी चाटने फसलें
पता नहीं है अपने ही कब
विष बुझे तीर तीखें उगलें
सोच समझ कर ताल ठोकन्ना
सब समझाते जयजयराम

घिसी पिटी भाषा लय स्वर गति
काम नही अब आने वाले
भानुमती के कुनवे की अब
गीत नही है सुनने वाले
पीर पराई ही पीने में
वे सुख पते जय जय राम
[भोपाल १५ नवम्बर २००८ ]

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