मै कितना मजबूर
मै बधुआ मजदूर
भालू बंदर जैसा हमको
मालिक रोज़ नचाता
बात बात में गाली देता
हरदम रौव जमाता
तन की चाँदी मन का सोना
आंसू से भरपूर
फटे पुराने कपड़े लत्ते
अंग अंग शर्माए
लगी फफूंदी रोटी सालन
मालिक जब भिज्बाये
अन्खाये सो जाती कुटिया
निदिया भागे दूर
खून पसीने की मेहनत
टुकडा टुकडा में
बाहर कुटिया रोटी
sabkee chhaatee
bheetr
लगीं फफूँदी रोटी सालन
मालिक जब भिजबाये
अन्खाये चाँदी मन कुटिया iyaa न्खाये दूर
चांदी पसीने जो कमाई
टूकडों
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