बीच शहर में रहकर अम्मा
गुमसुम रहती है!
चीन जैसी दीवारें
नील गगन छूती मीनारें
दिखें न सूरज चांद सितारें
घर-आगन सब बंद किवारे
ह्हुरी गाँव डगर से अम्मा
पल पल घुलती है!
नंगा नांच देख टी .बी.में।
नोंक झोंक सौहर बीबी में
नाती पोते मुंह लटकाए
सन्नाटा हर दम संनाये
देख देख सब घर में अम्मा
गुपचुप रहती है!
सारी दुनिया लगती बदली
चहरा सबका दिखता नकली
धर्म कर्म सब रखे ताकमें
सबके सब ,पैसा फिराक में
देख न सकती यह सब अम्मा
सच सच कहती है!
[भोपाल:1.1 ०८]
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