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Wednesday, 28 December 2011

अपना घर

यह तो
अपना घर
यहाँ
कौन सा डर?
खिड़की दरबाजे बजा रहे ताली
बरसों बाद मिलन नचती खुशहाली
घर हो
जगर मगर
तम हो
तितर बितर
ठहरो ठहरो घर बुला रहा तुमको
दशों दिशाएँ अवनी अम्बर जाने
बहे खबर
सर सर
निर्झर -सी
झर झर
असमंजस का तम उड़े हवा में फर फर
रेशम धागे प्रेम दिवाने सचमुच तर बतर
बिछ बिछ
जाए घर
शहद सा
है स्वर
[सैंट जॉन :कनाडा :०७.११.२०११]

Thursday, 22 December 2011

रोबोट हुए

हम थे न  कभी 
 पिजरे के सुए
 अब तो रोबोट सामान हुए
वचपन का परिवेश
बदल गए गणवेश
भूल गए घर देश
पश्चिमी हवा के साथ  हुए
भूले रोटी दाल
चटनी साग स्वाद
याद हौटल  माँल
बाजारबाद अभियान हुए
रेशम धागे  क्षार
काम दाम से प्यार
जीवन ज्यों व्यापार
अपने सब ही अनजान हुए
[सैंट जौन :कनाडा :२२.१२.२०११]