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Wednesday, 2 January 2008

कहानी

महानगर की अजब कहानी
आम आदमी है अनजाना
जीवन पथ के अथ में जितना
अखरा जितना सूनापन
शोर परसता तीखापन
बुनता प्रतिपल घोरप्रदूषण
महाप्रलय का तानाबाना
सारी दुनिया जब सो जाती
महानगर सो कर उठता
काला धंधा काला सिक्का
भारी असली पर पड़ता
मंत्री सांसद पैसों के घर
सुन्द्रियोंका आना जाना
अपसंस्कृति की ठेकेदारी
महानगर को लगी भली
विज्ञापन की उघरी नारी
महानगर में गली गली
महानगर पैसों का भूखा
अपशकुनी कौवा काना
किसने किसकी नाक काट ली
आँख कान सूजे भौके
किसने किसकी जेब नाप ली
पीछे से कुत्ते भौके
फूटे ज्वालामुखी बमों के
महानगर रहता अनजाना
[भोपाल:2.01.08]

Tuesday, 1 January 2008

गुमसुम रह्त्ती है !

बीच शहर में रहकर अम्मा
गुमसुम रहती है!

चीन जैसी दीवारें
नील गगन छूती मीनारें
दिखें न सूरज चांद सितारें
घर-आगन सब बंद किवारे
ह्हुरी गाँव डगर से अम्मा
पल पल घुलती है!

नंगा नांच देख टी .बी.में।
नोंक झोंक सौहर बीबी में
नाती पोते मुंह लटकाए
सन्नाटा हर दम संनाये
देख देख सब घर में अम्मा
गुपचुप रहती है!

सारी दुनिया लगती बदली
चहरा सबका दिखता नकली
धर्म कर्म सब रखे ताकमें
सबके सब ,पैसा फिराक में
देख न सकती यह सब अम्मा
सच सच कहती है!
[भोपाल:1.1 ०८]