महानगर की अजब कहानी
आम आदमी है अनजाना
जीवन पथ के अथ में जितना
अखरा जितना सूनापन
शोर परसता तीखापन
बुनता प्रतिपल घोरप्रदूषण
महाप्रलय का तानाबाना
सारी दुनिया जब सो जाती
महानगर सो कर उठता
काला धंधा काला सिक्का
भारी असली पर पड़ता
मंत्री सांसद पैसों के घर
सुन्द्रियोंका आना जाना
अपसंस्कृति की ठेकेदारी
महानगर को लगी भली
विज्ञापन की उघरी नारी
महानगर में गली गली
महानगर पैसों का भूखा
अपशकुनी कौवा काना
किसने किसकी नाक काट ली
आँख कान सूजे भौके
किसने किसकी जेब नाप ली
पीछे से कुत्ते भौके
फूटे ज्वालामुखी बमों के
महानगर रहता अनजाना
[भोपाल:2.01.08]