अम्मा ने हाथ धरा सिरपर
बापू ने चलना सिखलाया
घरसे बाहर पाव हिलाए
भूलभुलैयों ने भरमाया
अपनों को तो जहाँ कही भी
बिन पेंदी का लोटा पाया
अम्मा ने ध्यान दिया मुझ पर
बापू जी ने गुरु राट्बाया
कुरूर काल के हाथों ने जब
जीवन पथ का साथी छीना
दुःख दर्दों के शंयंत्रों ने
सुख पल पल का चुनचुन छीना
अम्मा ने भर लिया सिर पर
बापू ने धीरज बंधवाया
जाते जाते छोड़ गए वे
अजर अमर पद चिह्न अनुठे
महामंत्र गीता पुरान के
लगते उनके सम्मुख झूठे
मेरा दिल अम्मा के दिल सा
तन मेरा बापू प्रतिछाया
( भोपाल 7 नवम्बर 2007 )
Monday, 26 November 2007
Saturday, 24 November 2007
वरदान
माँ वरदान मुझे दे दो
जो कुछ बोलूँ सच-सच बोलूँ
सोच समझ कर रूक-रूक बोलूँ
अंतस का दरवाजा खोलूँ
जनम जनम के कल्मष धोलूँ
माँ वरदान mu jhe de do
मेरे शब्द मन्त्र बन जाएँ
मेरे गीत ऋचा बन जाएँ
पंख लगाकर सब उड़ जाएँ
अधरों पर सब के बस जाएँ
माँ गुरुज्ञान मुझे दे दो
मैं न किसी से वैर निभाऊँ
सब जग की पीडा पी जाऊँ
पत्थर की छाती पर लिख दूँ
अब तक जो ना विरचित रच दूँ
माँ उपमान मुझे दे दो
चरणों मेँ निज शीश झुका दूँ
दिल मेँ बस बक्शीश बसा लूँ
गाते गाते जब मर जाऊँ
अमर गीत बनकर जग जाऊँ
माँ सुरतान मुझे दे दो
[भोपाल :०७ .11.20०७]
जो कुछ बोलूँ सच-सच बोलूँ
सोच समझ कर रूक-रूक बोलूँ
अंतस का दरवाजा खोलूँ
जनम जनम के कल्मष धोलूँ
माँ वरदान mu jhe de do
मेरे शब्द मन्त्र बन जाएँ
मेरे गीत ऋचा बन जाएँ
पंख लगाकर सब उड़ जाएँ
अधरों पर सब के बस जाएँ
माँ गुरुज्ञान मुझे दे दो
मैं न किसी से वैर निभाऊँ
सब जग की पीडा पी जाऊँ
पत्थर की छाती पर लिख दूँ
अब तक जो ना विरचित रच दूँ
माँ उपमान मुझे दे दो
चरणों मेँ निज शीश झुका दूँ
दिल मेँ बस बक्शीश बसा लूँ
गाते गाते जब मर जाऊँ
अमर गीत बनकर जग जाऊँ
माँ सुरतान मुझे दे दो
[भोपाल :०७ .11.20०७]
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