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Monday, 26 November 2007

अम्मा बापू का ऋण

अम्मा ने हाथ धरा सिरपर
बापू ने चलना सिखलाया

घरसे बाहर पाव हिलाए
भूलभुलैयों ने भरमाया
अपनों को तो जहाँ कही भी
बिन पेंदी का लोटा पाया

अम्मा ने ध्यान दिया मुझ पर
बापू जी ने गुरु राट्बाया

कुरूर काल के हाथों ने जब
जीवन पथ का साथी छीना
दुःख दर्दों के शंयंत्रों ने
सुख पल पल का चुनचुन छीना

अम्मा ने भर लिया सिर पर
बापू ने धीरज बंधवाया

जाते जाते छोड़ गए वे
अजर अमर पद चिह्न अनुठे
महामंत्र गीता पुरान के
लगते उनके सम्मुख झूठे

मेरा दिल अम्मा के दिल सा
तन मेरा बापू प्रतिछाया

( भोपाल 7 नवम्बर 2007 )

Saturday, 24 November 2007

वरदान

माँ वरदान मुझे दे दो

जो कुछ बोलूँ सच-सच बोलूँ
सोच समझ कर रूक-रूक बोलूँ
अंतस का दरवाजा खोलूँ
जनम जनम के कल्मष धोलूँ
माँ वरदान mu jhe de do

मेरे शब्द मन्त्र बन जाएँ
मेरे गीत ऋचा बन जाएँ
पंख लगाकर सब उड़ जाएँ
अधरों पर सब के बस जाएँ
माँ गुरुज्ञान मुझे दे दो

मैं न किसी से वैर निभाऊँ
सब जग की पीडा पी जाऊँ
पत्थर की छाती पर लिख दूँ
अब तक जो ना विरचित रच दूँ
माँ उपमान मुझे दे दो

चरणों मेँ निज शीश झुका दूँ
दिल मेँ बस बक्शीश बसा लूँ
गाते गाते जब मर जाऊँ
अमर गीत बनकर जग जाऊँ
माँ सुरतान मुझे दे दो
[भोपाल :०७ .11.20०७]