घनघोर बारिश आनंद के दोहों में
दसों दिशा में हो रही,बारिश जब घनघोर
बोलो कैसे अब नचें ,वन उपवन में मोर
बारिश खड़ी बजार में, फूंक रहीहैशंख
बिस्तर अपना बांध लो,और समेट पंख
बारिश ने अब धर लिया, आतंकी का रूप
उसको अब भाती नहीं, हंसी खुशी की धूप
कान खोल सुन लीजिए, मचा हुआ कुहराम
जन जीवन की होगई,सचमुच नींद हराम
जड़- जंगल सबके गले,फँसी मौत की फाँस
बारिश का पहरा कड़ा,थमी सभी की साँस
नदी- नाव संबंध पर,लगा दिए प्रतिबंध
पुल-पुलिया डूबे सभी,डूब गए तटबंध
कुआं- बाबड़ी- बाँध के, बंद हिसाब किताब
पानी पानी हो गए,सबके गाल गुलाब
घन-गर्जन बिजली चमक, बारिश है घनघोर
माँ की गोदी में छिपे, बच्चे सुनकर शोर
नर-नारी- बाहन बहे,जैसे खर-पतवार
गाँव-गली कुछ शहर के, बहे कई परिवार
स्वर्णिम सपने रात के, हो गए चकनाचूर
खारा पानी चुक गया,आँखें हैं मजबूर
लाशों पर लाशें बिछीं,सभी ओर सुनसान
दफनाए किसको कहाँ, बचे नहीं शमशान
आठ- आठ आँसू बहा,सारा जग हैरान
धरा- गगन की घोषणा, वारिश है हैबान
हम सबकी ही भूल का, ये सब दुष्परिणाम
कहीं बाढ़ सूखा कहीं, सभी अटपटे काम
कवि-कविता कैसे रचे,मधुर सुरीले छंद
सब दुनिया पर आपदा, लुटा अमित आनंद
(डाॅ. जयजयराम आनंद:भोपाल)