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Thursday 18 August, 2022

घनघोर बारिश आनंद के दोहों में
दसों दिशा में हो रही,बारिश जब घनघोर
बोलो कैसे अब नचें ,वन उपवन में मोर
बारिश मनमानी करे,तोड़े सब अनुबंध
सदियों की सौगात के,तार तार सम्बंध
बारिश खड़ी बजार में, फूंक रहीहैशंख
बिस्तर अपना बांध लो,और समेट पंख
बारिश ने अब धर लिया, आतंकी का रूप
उसको अब भाती नहीं, हंसी खुशी की धूप
कान खोल सुन लीजिए, मचा हुआ कुहराम
जन जीवन की होगई,सचमुच नींद हराम
जड़- जंगल सबके गले,फँसी मौत की फाँस
बारिश का पहरा कड़ा,थमी सभी की साँस
नदी- नाव संबंध पर,लगा दिए प्रतिबंध
पुल-पुलिया डूबे सभी,डूब गए तटबंध
कुआं- बाबड़ी- बाँध के, बंद हिसाब किताब
पानी पानी हो गए,सबके गाल गुलाब
घन-गर्जन बिजली चमक, बारिश है घनघोर
माँ की गोदी में छिपे, बच्चे सुनकर शोर
नर-नारी- बाहन बहे,जैसे खर-पतवार
गाँव-गली कुछ शहर के, बहे कई परिवार
स्वर्णिम सपने रात के, हो गए चकनाचूर
खारा पानी चुक गया,आँखें हैं मजबूर
लाशों पर लाशें बिछीं,सभी ओर सुनसान
दफनाए किसको कहाँ, बचे नहीं शमशान
आठ- आठ आँसू बहा,सारा जग हैरान
धरा- गगन की घोषणा, वारिश है हैबान
हम सबकी ही भूल का, ये सब दुष्परिणाम
कहीं बाढ़ सूखा कहीं, सभी अटपटे काम
कवि-कविता कैसे रचे,मधुर सुरीले छंद
सब दुनिया पर आपदा, लुटा अमित आनंद
(डाॅ. जयजयराम आनंद:भोपाल)

Saturday 8 June, 2019

क्या बला की धूप?

चिलचिलाती धूप है /फनफनाती धूप है
बाल -रवि घर से चला /खिलखिलाती धूप है 
चमन में हर कली को /गुदगुदाती धूप है
ताप के  तेवर तने/फनफनाती धूप है
छतरियाँ कूलर चले/सर छिपाती धूप है
देखकर हैरान जग /मुस्कराती धूप है
हवा के संग जब बहे /सनसनाती धूप है
पीकर प्रदूषण भांग /बडबडाती धूप है
पारा हुआ हैरान /तिलमिलाती धूप है
आ छिपे सब छाँव में /क्या बला की धूप है
दिन ढला सूरज चला /मिनमिनाती धूप है 
[भोपाल:३०.११.२०१२]  

मोदी जी का k amaal

मोदी जी ने किया कमाल
अनुत्तरित ना रहे सवाल
हर गाली का दिया जवाब
मधुर प्रेम रस भरी किताब
सभी विरोधी भूले दांव
होठ बंद औ' ठिठके पाँव 
राहुल ममता हुए निराश 
हुआ झूठ का पर्दाफास 
मोदी जब बन गए फ़कीर
भेदभाव की मिटी लकीर 
मिलजुल हमसब करें विकास 
सब दुनिया को हो अहसास 
मिटे अँधेरा जले मशाल 
भारत मां का ऊंचा भाल
गुरु -पद गरिमा की पहचान
मिले पुन: छेड़ें अभियान 
ऐसा रचे नया इतिहास 
दुनिया माने जिसको ख़ास
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अजब कहानी

अजब कहानी 
सुनो सुनाता अजब कहानी
पानीदार हुए बेपानी
सरिताओं की गायब कलकल /तन मन छीजरहा पलपल 
याद आरही सबको नानी ...
हार खेत को मिले ना पानी /फसलें कैसे हो मनमानी
जीवन की मिट रही निशानी ...
धरा गगन की बदली भाषा /मौसम की गड़बड़ परिभाषा
गूंजे घोर प्रदूषण वाणी ...
पानी दार ध्यान से सुनना /जो कहता हूँ उसको गुनना
मत करना अपनी मनमानी ...
जिसके अपने सपने जैसे /कदम उठाए यदि वे बैसे
बने सफलता अमित निशानी ...
[भोपाल:०३.०६..२०१९]

Monday 12 June, 2017

आनंदका प्रभाती गीत


  • प्रभाती गीत
    सूरज निकला हुआ सबेरा
    पूँछ दबाकर भगा अँधेरा
    देखो जाग गया जग सारा
    तूँ मेरी आँखों का तारा
    मेरे बेटे जग जा जग जा
    बितर से तूँ उठ जा उठ जा

    वन उपवन सब पंछी जागे
    खुशियाँ नाचें सबके आगे
    तितली भौरा गाते गाना
    कोयल गाती मधुर तराना
    अरे लाड़ले सुन सुन जग जा
    बिस्तर से तूँ उठ जा उठ जा
    घर आगन में खेल खेलना
    चोट लगे तो उसे झेलना
    भावी जीवन की तैयारी
    नहीं खलेगी पड़े न् भारी
    [ह्यूस्टन ;१२.०६..२०१७]
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  • प्रभाती गीत
    सूरज निकला हुआ सबेरा
    पूँछ दबाकर भगा अँधेरा
    देखो जाग गया जग सारा
    तूँ मेरी आँखों का तारा
    मेरे बेटे जग जा जग जा
    बितर से तूँ उठ जा उठ जा

    वन उपवन सब पंछी जागे
    खुशियाँ नाचें सबके आगे
    तितली भौरा गाते गाना
    कोयल गाती मधुर तराना
    अरे लाड़ले सुन सुन जग जा
    बिस्तर से तूँ उठ जा उठ जा
    घर आगन में खेल खेलना
    चोट लगे तो उसे झेलना
    भावी जीवन की तैयारी
    नहीं खलेगी पड़े न् भारी
    [ह्यूस्टन ;१२.०६..२०१७]
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