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Friday, 2 August 2013

चमत्कार

                       चमत्कार
वैश्वीकरण
उदार बजरिया 
बदल रहा है जगत नजरिया

नंग धड्न्गें जो रह करके
जंगल जंगल रहे भटकते
 नून तेल लकड़ी चक्कर में
रहे रात दिन पैर पटकते
भावी पीढ़ी
चन्दा पर जा
निज परचम फहराय जबरिया …

जितने चतुर हुए मछुयारे
उनसे ज्यादा चतुर मछरियाँ
जहा कहीं भी जाल बिछे हों
सपनेहूँ ना गिनें ड गरियाँ
अब लगता है
बिलकुल ऐसा
 दिल दिमाग की खुली किवरिया

चलता है सब उलटा पुलटा
शाश्वत सत्य लगें सब झूठे
पुरखे यदि आकर करके परखें
लगें नियम सब थोंथे ठूँठे
चकाचौंध हों
फिर यह सोचे
चमत्कार कर रहा सवरिया
[भोपाल :०१ . ०८ . २०१३ ]