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Tuesday, 19 October 2010

भला हुआ जो अम्मा तुमने ...

भला हुआ जो अम्मा तुमने
राह स्वर्ग की पकड़ी
लम्बी बीमारी ने तुमको
बना दिया था ठठरी
सब दुनिया भौचक्की होती
देख दबाएँ गठरी
तन्त्र मन्त्र -लुकमान डाक्टर
सबने छोडी आशा
तन की गाड़ी मन के पहिये
छोड़ चुके थे पटरी
दूभर था खाट छोड़ना भी ,थाम थाम कर लकड़ी
आठ आँसू रोते थे
कुत्ता बिल्ली डेली
घर आँगन बुनता सन्नाटा
तुमको देख अकेली
दशों दिशाएँ अवनी अम्बर
छोड़े हाल पूंछना
तरस गईं थीं बतियानें को
खटिया लेटे लेटे
निखुराते थे बहुएं बेटे ,छुटकी हरदिन झगड़ी
सिखलाया था जिनको तुमने
स्वर्णिम सपने बुनना
छोटा पड़ता था घर आँगन
कमरा अपना अपना
आह कराह खांसना असमय सबको
सबको अखरा करता
निश्चित था डौगी पूसी को
खाना पानी फिरना
जब पहुँचीं आश्रम तुम अम्मा ,मनी दिवाली तगड़ी
[भोपाल:१०.१०.२०१०]