बिन नागा के कुशल मछेरा
रोज़ ताल में जाल बिछाता
मिली विरासत मछुयारे को
आदिकाल से जाल बिछाना
छोटी बड़ी मछरियाँ सोंचे
मुश्किल उससे जान बचाना
काम न आए कोई बहाना
उसको नित बाजार बुलाता
मछुआरे की सूझ -बूझ ने
पेट प्रे में का लक्ष्य चुना है
शकुन्तला दुष्यंत मिलन का
चिर परिचित आख्यान बुना है
कालिदास का अम्र ताराना
सब जग को संदेश सुनाता
मौत एक की नये सृजन की
सदा सौपती आई थाती
रवि किरणों को मिलता जीवन
ज्ब्ब्दीप्क की बुझती बाती
असमंजस में पड़ीं मछरियाँ
मछुआरे का राग न भाता
[भोपाल:इ९.०९.०८]